भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार ने संकेत दिए हैं कि अब राज्य के वन क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों को उनके पारंपरिक पूजा स्थलों से न हटाया जाएगा। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने शुक्रवार को कहा कि सरकार ऐसे स्थलों का संरक्षण सुनिश्चित करेगी और इसके लिए आवश्यक हुआ तो मौजूदा नियमों में बदलाव से भी परहेज नहीं किया जाएगा।
प्रशासन अकादमी में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में बोलते हुए मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि आदिवासियों की धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक परंपराओं का सम्मान किया जाएगा। “वे वनों में केवल पूजा करते हैं, कोई अवैध गतिविधि नहीं। अगर वे कुछ मामूली निर्माण भी करना चाहें, तो उसे गलत नहीं माना जाना चाहिए,” मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा।
परंपराओं पर पाबंदी नहीं, सहयोग की नीति होगी लागू
कार्यशाला में मौजूद केंद्रीय वन मंत्री भूपेंद्र यादव और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष सीएम ने इस मुद्दे को नीति-निर्माण के स्तर पर उठाया। उन्होंने कहा कि विकास की योजनाएं जनजातीय समाज के हितों को प्रभावित न करें, इसके लिए प्रशासनिक सोच में बदलाव जरूरी है।
मंडला जैसे जिलों का उदाहरण देते हुए सीएम ने बताया कि कई स्थानों पर साज के पेड़ों की पूजा होती है, लेकिन प्रशासनिक नियमों के चलते इन स्थलों तक पहुंचना भी मुश्किल हो जाता है। निर्माण तो दूर की बात है।
‘औपनिवेशिक सोच से उबरने का समय’
मुख्यमंत्री ने वन प्रबंधन की पुरानी औपनिवेशिक मानसिकता पर सवाल उठाते हुए कहा कि अब समय आ गया है जब प्रकृति और विकास के बीच संतुलन बैठाया जाए। उन्होंने पेसा एक्ट को इस दिशा में एक अहम कदम बताया।
प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान जरूरी: केंद्रीय मंत्री
केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने अपने संबोधन में कहा कि प्रकृति स्वयं जो भी उत्पन्न करती है वह टिकाऊ होता है, लेकिन मानव निर्मित वस्तुएं अक्सर पर्यावरण के लिए समस्या बनती हैं। उन्होंने सॉलिड वेस्ट और ई-वेस्ट प्रबंधन को बड़ी चुनौती बताते हुए प्लास्टिक के उपयोग में कटौती और सामुदायिक भागीदारी पर बल दिया।
जनजातीय आजीविका और वन संरक्षण पर भी चर्चा
राज्य के जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह ने कहा कि समुदाय आधारित वन पुनर्स्थापना और जलवायु अनुरूप आजीविका पर गंभीर चर्चा की आवश्यकता है। केंद्रीय जनजातीय कार्य राज्य मंत्री दुर्गादास उइके ने मिश्रित वनों के नष्ट होने से जनजातीय पलायन की समस्या को रेखांकित किया।
विचारक गिरीश कुबेर ने कहा कि वन और वनवासी एक-दूसरे के पूरक हैं, और उनके हितों का परस्पर संरक्षण ही दीर्घकालिक समाधान है।
