जशपुर नगर,द प्राइम न्यूज नेटवर्क। मैं खाक में भी मिलकर तुझसे जुदा हो नहीं सकता और
इससे मैं ज्यादा तेरा हो नहीं सकता।
युद्धवीर सिंह जूदेव ने जब सोशल मीडिया के माध्यम से अपने ही अंदाज में इस शायरी को अपने चाहने वालों को सुनाया था तो किसी को अनुमान भी नहीं था कि उनके मुंह से निकल रहे शब्द इस तरह से हकीकत में तब्दील हो जाएंगे।
दिवंगत दिलीप सिंह जूदेव के इस लाडले ने भले ही महज 36 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया हो,लेकिन इतनी कम उम्र में युद्धवीर ने राजनीति में अपने जादू की जो चमक बिखेरी है,वो ताउम्र गुजार देने के बाद भी दिग्गजों को कम ही नसीब होता है।
विजय विहार पैलेस से बुधवार की दोपहर 12 बजे जब उन्हें अंतिम सफर में ले जाने के लिए परिजनों ने कंधों में उठाया तो उनकी धर्मपत्नी श्रीमती संयोगिता सिंह जूदेव,माँ श्रीमती माधवी सिंह जूदेव और युद्धवीर की लाडली ही नहीं,जशपुर के हर शख्स की आंखें नम थी।
एक मां से उसका बेटा,एक पत्नी से पति और एक मासूम बेटी से पिता का साया छीन जाने का गम,शायद ईश्वर के दिल को भी दहला गया था,यही कारण है कि आसमान ने भी अमृत वर्षा कर युद्धवीर का,जशपुर की मिट्टी में स्वागत करने के लिए बाहें फैला दी।
एक माह तक मौत से आंखें लड़ाने के बाद,अपने दहाड़ से विरोधियों के कलेजे को हिला देने वाले इस शेर की आंखे भले ही बंद थी,लेकिन जशपुर से अथाह प्रेम करने वाले छोटू बाबा,जशपुर को छोड़ कर जाने के लिए मौत के बाद भी तैयार नही थे।
भगवान बालाजी,माँ काली और अघोरेश्वर के इस अनन्य भक्त ने अंततः जनसैलाब की गवाही में,राजकीय सम्मान और वैदिक मंत्रोच्चार के बीच अपने पूर्वजों की मिट्टी का तिलक अपने माथे पर लगाया।
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